वेदों में इतिहास नही

वेदों में इतिहास नही - मध्यकालीन आचार्यों के प्रमाण से -
सायण आदि मध्यकालीन आचार्य सभी वेदों में इन्द्रादि राजाओं का इतिहास नही मानते है वे किसी राजा, ऋषि के नाम जैसे प्रतीत होने वाले शब्दों को समान्य शब्द ही मानते हैं, फिर भी आश्चर्य की बात है कि कम्युनिस्ट और अम्बेडकरवादी इतिहासकार वेदों से इतिहास दिखाने का कुकर्म करते हैं और आर्य आक्रमण की दुःकल्पना करने लग जाते हैं।
यहाँ हम पौराणिक आचार्य और महाभारत के प्रसिद्ध टीकाकार नीलकण्ठ की टीका का प्रमाण देते है -
इन्द्र, वज्र और वृत्र के विषय में नीलकंठ अपनी नीलकंठ टीका में लिखते हैं कि " सर्वत्र इन्द्रवृत्रवज्रशब्दानामात्ममायाविवेकवाचित्वमाश्वमेधिके। स्पष्टीभविष्यति। अनयैव दिशा कृत्स्नो वेदार्थोSपि निर्वोढव्यः। नमुचेः न मुञ्चतीति आवरणापगमे सत्यपि प्रतिबिम्ब भ्रमवदित्यज्ञानगतविक्षेपशक्तिर्नमुचि" - महाभारत, आदिपर्व अध्याय 3 पर नीलकंठकृत भारतभावदीप टीका
अर्थात् सब जगह इन्द्र, वृत्र तथा वज्र शब्द क्रमशः आत्मा, माया और विवे्क के अर्थ वाची है। इसी प्रक्रिया से वेदों के सम्पूर्ण अर्थ का निर्वाह कर लेना चाहिए।
नमुचि का अर्थ है जो नही छोडता अज्ञानरूपी आवरण अर्थात् अज्ञानविक्षेप शक्ति नमुचि है। यहाँ स्पष्ट इन शब्दों के यौगिक अर्थ ही सिद्ध होते है। एक अन्य प्रमाण और देखिए -
अपने निरूक्त समुच्चय में आचार्य वररूचि लिखते हैं -
"औपचारिकोSयं मन्त्रेष्वाख्यानसमयो नित्यत्वविरोधात्। परमार्थेन तु नित्यपक्ष एवेति नैरूक्तानां सिद्धान्तः " - निरूक्त समुच्चय 4.85
अर्थात् नित्य विरोध होने से मन्त्र में इतिहास औपचारिक ही समझना चाहिए। वेदों का परमार्थ तो नित्यपक्ष में नैरूक्तिक सिद्धान्त हैं। अर्थात् वेदों में एतिहासिक अर्थों की निरूक्त के द्वारा अर्थ योजना करनी चाहिए।
जैसे - इन्द्र ने वृत्र को मारा तो इसका अर्थ होगा विद्युत से मेघ का जलरूप गिरना।
अतः सिद्ध है कि वेदों में इतिहास नही है और वेदों को निरूक्त पद्धति से अर्थ कर समझना चाहिए।

-नटराज नचिकेता

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