क्या वेद तीन है और क्या अथर्ववेद को बाद में सम्मिलित किया गया था?
शंका- क्या वेद तीन है और क्या अथर्ववेद को बाद में सम्मिलित किया गया था?
समाधान- संस्कृत वांग्मय में कई स्थानों पर ऐसा प्रतीत होता है कि वेद तीन हैं? क्यूंकि वेदों को त्रयी विद्या के नाम से पुकारा गया हैं और त्रयी विद्या में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद इन तीन का ग्रहण किया गया हैं। उदहारण में शतपथ ब्राह्मण ६.१.१.८, शतपथ ब्राह्मण १०.४.२.२२, छान्दोग्य उपनिषद् ३.४.२, विष्णु पुराण ३.१६.१ आदि परन्तु यहाँ चार वेदों को त्रयी कहने का रहस्य क्या हैं?
इस प्रश्न का उत्तर चारों वेदों की रचना तीन प्रकार की हैं। वेद के कुछ मंत्र ऋक प्रकार से हैं, कुछ मंत्र साम प्रकार से हैं और कुछ मंत्र यजु: प्रकार से हैं। ऋचाओं के सम्बन्ध में ऋषि जैमिनी लिखते हैं पादबद्ध वेद मन्त्रों को ऋक या ऋचा कहते हैं (२.१.३५), गान अथवा संगीत की रीती के रूप में गाने वाले मन्त्रों को साम कहा जाता हैं (२.१.३६), और शेष को यजु; कहा जाता हैं। (२.१.३७)
ऋग्वेद प्राय: पद्यात्मक हैं, सामवेद गान रूप हैं और यजुर्वेद मुख्यत: गद्य रूप हैं और इन तीनों प्रकार के मंत्र अथर्ववेद में मिलते हैं। इस प्रकार के रचना की दृष्टि से वेदों को त्रयी विद्या कहाँ गया हैं।
इसका प्रमाण भी स्वयं आर्ष ग्रन्थ इस प्रकार से देते है
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये चारों वेद श्वास- प्रश्वास की भांति सहज भाव से परमात्मा ने प्रकट कर दिए थे- शतपथ ब्राह्मण १४.५.४.१०
मैंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये चारों वेद, ये चारों वेद भी पढ़े हैं- छान्दोग्य उपनिषद् ७.१.२ और छान्दोग्य उपनिषद् ७.७.१
इसी प्रकार बृहदअरण्यक उपनिषद् (४.१२), तैत्रय उपनिषद् (२.३), मुंडक उपनिषद (१.१.५), गोपथ ब्राह्मण (२.१६), आदि में भी वेदों को चार कहाँ गया हैं।
वेद चार ही है मगर उनकी शैली तीन प्रकार की है इसलिए उन्हें त्रयी विद्या के नाम से जाना जाता हैं।
डॉ विवेक आर्य
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