हिन्दू मन्तव्य की पोल खोल

हिन्दूमन्तव्य की पोल खोल
              -अथर्व आर्य

कुछ लोग हैं जो खुद को हिंदू कहते हैं और स्वामी दयानंद जी  का विरोध करते हैं उन्होंने हिंदू मंतव्य नाम से एक ब्लॉग बनाया है जिस पर वह स्वामी जी को गालियां देते हैं यह लेख उनके मुंह पर जोरदार तमाचा है | इनका एक लेख आया था दयानंद का अद्भुत विज्ञान नाम से तो आज उसकी समीक्षा करते हैं

पहला  आक्षेप इस पर किया है कि स्वामी जी ने नवम समुल्लास में एक स्थान पर लिखा है कि आकाश का कोई रंग नहीं होता तो तो प्रश्न करते हैं लोग कि ऊपर जो दिखाई देता है यह क्या है स्वामी जी कहते हैं कि जो ऊपर दिखता है जो अलग-अलग तरह के त्रसरेणु  अर्थात कण हैं, अग्नि के पृथ्वी के जल के उनके कारण ही यह रंग दिखाई जाए बिल्कुल सही है वैज्ञानिक तथ्य है आगे स्वामी जी कहते हैं जो नीला है यह जल  जो बरसता है उसके कारण दिखाई देता है अब मूर्खों ने ऐसा काम किया है कि इस  बात को लेकर स्वामी जी के बारे में बहुत अपशब्द कहे हैं इस ब्लॉग में । इन लोगों ने खुद कुछ विज्ञान पढ़ा नहीं है और आकर यहां पर अपना ज्ञान झाड़ रहे हैं केवल विरोध करने के लिए तो आप इसकी समीक्षा करते हैं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में स्वामी जी लिखते हैं कि जो जल है वह सूर्य के कारण कण कण रूप में अर्थात भाप रूप में परिवर्तित होकर आकाश में चला जाता है स्वामी जी मानते हैं कि जो जल है आकाश में वह भाप रूप में होता है और खुद लिखा है आपने ने इस प्रश्न के सबसे अंत में लिखा है कि जो गैस हैं उनके कारण रंग दिखाई देता है तो जल भी तो गैस रूप में ही है  वही जो गैस रूप में जल है वही उसके कारण जो हैं वह जो प्रकाश की किरणें हैं उनके गुणों को उसके टक्कर देते हैं जिसे अंग्रेजी में स्कैटरिंग कहा जाता है, प्रोसेस है पूरा और जो बैगनी नीला आदि रंग है उसकी वेवलेंथ सबसे जो है कम होती है इसलिए सबसे जल्दी स्कैटर हो जाता है इसलिए नीला रंग दिखाई देता है बिल्कुल वैज्ञानिक बात की है स्वामी जी ने ,वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं स्वामी जी का एक एक अक्षर सत्य लिखा है उसमें आपकी समझ में नहीं आता यह आपकी कमी है आप में बुद्धि कम है आप मूर्ख हैं यह बात पता चल रही है आपके लिए एक से और आपकी जो भाषा है उससे स्पष्ट है कि आप  ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है आप एक अनपढ़ व्यक्ति है जो बातें कहीं कहीं से कॉपी पेस्ट कर कर के अपनी बातें लिखता है आपकी भाषा से स्पष्ट हो गया है एक और जगह पर स्वामी जी लिखते हैं कि जल तो हमारे चारों तरफ है लेकिन भाप रूप में है स्वामी जी यह मानते हैं कि जो जल है वह बाप रूप में चारों तरफ होता है और यही बात वैज्ञानिक भी मानते हैं और यही इसी कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है बात को अगर आप नहीं मानते तो आप से बड़ा मूर्ख कोई नहीं है।

फिर कहते हैं कि जो बादल हैं वह भी जल्द से बनाते तो बादल क्यों नहीं दिखते अरे भाई तुमने विज्ञान पढ़ा नहीं है स्कूल जाओ दोबारा पढ़ कर आओ क्या इस स्कैटरिंग का प्रोसेस क्या है कैसे होता है तुम जब नहीं पता जानते नहीं हो तो क्यों यहां अपनी बुद्धि लगा रहे हो और खुद को वैज्ञानिक सिद्ध करने में लगे हो तुम से बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा जब पानी का एक कारण नीला रंग को वह स्कैटर करता है तो जब पूरा बादल जो उन पानी के कणों का सघन रूप है  condensed  रूप में जल जो है वह पूरे प्रकाश को जो किस हुए श्वेत रंग का होता है उसको हमारी आंखों की तरफ भेजता है इसलिए वह सफेद दिखाई देता है पर आप इतने बड़े मुर्ख है इतनी सी बात नहीं समझे कृपा करके विद्यालय जाइए दोबारा पढ़िए और अपनी भाषा ठीक कीजिए उसके बाद अपना चरित्र ठीक कीजिए आचार ठीक कीजिए उसके बाद कहीं जाकर आप विद्या पढ़ने के लायक बनेंगे पर स्वामी जी पर आक्षेप करने के लिए तो जीवन भर योग्य नहीं बनेंगे ,सात जन्मों में नहीं बनेंगे।

नीला बैंगनी और आसमानी रंग की तरंगे कम वेवलेंथ के कारण जल के कणों और धूल आदि के कणों जो स्वामी जी ने लिखा है पृथ्वी अग्नि और जल के कारण है जिनके कारण रंग दिखाई देता है इस बात को विज्ञान भी मानता है और तुम्हें भी मानना पड़ेगा तुम कैसे नहीं मानते और हमारे विषय में बोलते हो अरे तुम्हारे मत में तो पृथ्वी शेषनाग पर खड़ी है देख लो पुराण पढ़कर अपने,  हिंदू मंतव्य वालों पुराण देखो अपने।

अब दूसरे अक्षेप पर आते हैं तो यह क्या कहते हैं कि स्वामी जी ने पहले 33 देवता को चेतन माना फिर जड़ माना , अरे भाई चेतन तो कभी माना ही नहीं कहां लिखा है चेतन है यह तुम्हारा पूर्वाग्रह के देवता है तो चेतन होना आवश्यक है  इसी से पता चलता है कि तुमने कोई विद्या नहीं पड़ी ना तुमने शतपथ ब्राह्मण पड़ा है ना तुमने बृहदारण्यक उपनिषद् ही पढ़ा है बस तुमने क्या पढ़ा है भागवत पुराण पढ़ा है और गपोड़े पढ़े हैं और कुछ नहीं पढ़ा तुमने जो जो स्वामी जी ने लिखा है वह यह बृहदारण्यकोपनिषद और शतपथ ब्राह्मण से लिखा है तो तुम बोल दो कि शतपथ ब्राह्मण गलत है  या कह दो कि तुम खुद गलत हो , तो मान लो कौन सही है तुम या ऋषि मुनि शतपथ ब्राह्मण लिखने वाले। और आगे लिखते हो कि स्वामी जी ने लिखा है कि पृथ्वी जल आदि भूगोल लोक है अरे मेरे अनपढ़ भाई ऊपर पढ़ ले ऊपर क्या लिखा है सूर्य चंद्र तारे आदि भूगोल लोक हैं  तारे नक्षत्र आदि को भूगोल लोक कहा है पृथ्वी, जल, आकिश आदि को नहीं, पढ़ लो ध्यान से इसीलिए कह रहा हूं कि तुम अनपढ़ हो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो पूरी बात बिना पढ़े काम करते हो आगे देखो सूर्य चंद्र तारों में जल पृथ्वी आकाश आदि है यह मनुष्य को बसाने में काम करते इसलिए इनको वसु कहा है भूगोल तो चंद्र सूर्य और तारों आदि को ही कहा है।  इससे स्पष्ट पता चलता है कि तुम्हारे दिमाग का स्क्रू ढीला है क्योंकि यह शब्द तुमने ऋषि दयानंद के लिए लिखें इसलिए पहले अपना इलाज करवाओ अपने स्कूल ठीक करवाओ आंखें खोलो तब पढ़ना आंखें बंद करके पढ़ते हो मूर्ख। और ना तुमने दर्शन शास्त्र ही पढ़े हैं।

आगे चलते हैं तुम कहते हो कि सूर्य पर मनुष्यादि श्रिष्टि नहीं हो सकती अरे मेरे मूर्ख भाई देखिए पृथ्वी पर जल अधिक है तो हमारा क्या है हमारे शरीर में 70% जल है और पृथ्वी पर भी 70% जल है जितना  प्रतिशत जल पृथ्वी का भाग है लगभग उतना प्रतिशत जल हमारा भी भाग है पृथ्वी जल प्रधानों इसलिए हमारा शरीर जल प्रधान है हम सूर्य पर जाएंगे तो हम भस्म हो जाएंगे कि हमारा शरीर जल प्रधान है लेकिन जिनका शरीर अग्नि प्रधान है वह तो सूर्य पर रह सकते हैं, यह बात नासा भी मानता है पिछले साल ही रिसर्च  पेपर में आया है कि जीव जंतु सूर्य पर रह सकते हैं जिनका शरीर अग्नि प्रधान हो और पता है क्या समस्या है तुम जैसे लोगों की?, तुम्हारे साथ समस्या यह है कि जब तक विदेशी कोई बात ना कह देना तुम लोग मानने को तैयार नहीं होते उस बात को अब जब नासा ने कह दिया तो अब मुंह छुपाकर भागोगे क्यों भागोगे भाई क्योंकि तुम में बुद्धि नाम की चीज नहीं है जो चीज तुम्हारी समझ नहीं आती उसको तुम गलत बोल देते हो इतने बड़े मुर्ख हो
शतपथ ब्राह्मण का जो तुमने अर्थ क्या वह भी तुमने सही अर्थ नहीं किया तुमने बात को घुमा कर लिखा है। और क्या ईश्वर का सामर्थ्य इतना नहीं कि अग्नि प्रधान शरीर बना दे?

अब आते हैं आपके शतपथ ब्राह्मण के अर्थ पर क्या अर्थ क्या जी आपने बात को घुमा घुमा कर लिख रहे हो स्पष्ट भाषा में स्वामी जी ने भाष्य किया उस भाष्य को गलत सिद्ध नहीं कर सकते आप, अपनी मर्जी से उल्टा-सीधा भाष्य करके डाल रहे हो और आपकी भाषा इतनी गंदी निम्न स्तर की भाषा है जिसे आप अपने माता-पिता के सामने प्रयोग नहीं कर सकते|
बात यहां समाप्त हुई आपका मैंने खंडन अच्छे से कर दिया है और जो मुंह पर तमाचा लगा है आपको उसका इलाज किसी डॉक्टर से करा लीजिएगा अच्छा रहेगा अब आगे चलते हैं आप की पोल खोल लूंगा मैं
आप जो विज्ञान की बातें करते हो अपनी पुस्तकों में कभी देखा है क्या  विज्ञान भरा है मैं बताता हूं आपको इतना  कि आप शर्मा जाओ  पुराणों के अनुसार धरती चपटी है  शेषनाग और हाथी उसको पकड़ कर खड़े हैं
आ गई आपकी विज्ञान की बात कहां है शेषनाग ?शेषनाग किस पर खड़ा है ? बताइए जरा इतनी मूर्खतापूर्ण बातें आपके पुराणों में लिखे हैं , पर हमारे पर टिप्पणी करने कि आपने हिम्मत की है बहुत ज्यादा हिम्मत कर दी है। और पुराणों के अनुसार तो सूर्य पृथ्वी के चारों तरफ घूमता है राथ पर बैठकर सूर्य घूमता है ना सात घोड़े उसके रथ में।  और एक बंदर की शक्ल वाला मनुष्य सूर्य को निगल सकता है, कुछ छोटा-मोटा यज्ञ करने से शनि ग्रह अपनी स्थिति बदल लेता है , नक्षत्र अपनी स्थिति बदल लेते हैं , सूर्य का प्रकोप हो जाता, किसी पर शनि का प्रकोप हो जाता है ,किसी के ग्रहण उसमें कुंडली में मंगल है आता है मंगल को हटा भी देते हैं लोग ऐसी ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें आपके उसमें भरी हुई हैं और आप हमें हमारे पर टिप्पणी कर रहे हो आप के लिए तालियां बजाने चाहिए आपको सामने खड़ा करके आपके लिए तालियां बजवानी पड़ेंगी।
उपेंद्र कुमार हिंदू यह केवल शुरुआत है आगे-आगे देखते जाइए आपकी पूरी पोल खोल होगी।

जय आर्य जय आर्यवर्त
                                   अथर्व आर्य

Comments

  1. Very good brother is vidharmi nastik ko uttar Diya is ke pas apna Kutch nahi Hain purani pustako se se at udhar karta Hain. It a darpok Hain ye upender apna photo bhi apne blog pe nahi dalta. Iske sabhi aaksapo ka aap uttar do aap ka logic strong Hain. om tat sat.

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  2. you are right. aap ne us dhandabaaj ko accha reply diya

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  3. अब एक पुराणी ने तुम आर्य समाजियों की पोल खोलना शुरू किया तो तुम्हारी किलस गई। मैं Hindumantavya को support करता हूँ। मैं स्वयं भी एक पुराणी हूँ और मुझे इसपर गर्व है। मैं आर्य बनने में विश्वास करता हूँ, आर्य समाजी बनने में नहीं।
    धन्यवाद

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