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Showing posts from March, 2018

आवश्यक सूचना

                               सूचना इस ब्लौग के माध्यम से ये घोषित कीया जाता है कि वेद ही सब सत्य विद्या के मूल स्त्रोत है। वेद में कहीं एक शब्द भी गलत नहीं है अतः जो लोग उलटे सीधे भाष्य करके वेदों पर आक्षेप करते हैं वो अपनी बात को आर्ष ग्रंथो से कदापि सिद्ध ना कर पावेंगे। वेद विषय में हर आक्षेप का उत्तर इस ब्लौग द्वारा दीया जाएगा। जो भी वेदों को नहीं मानते वो गहरे अंधकार में हैं और उन्हें वहां से निकालना हमारा लक्षय है। कृपया सहियोग दें ब्लौग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। यदि आप उन लोगों में से हैं जो वेद पर आक्षेप करते हैं तो सावधान हो जाइए क्युंकी आपक झूठ ज्यादा दिन नहीं टिकेगा।                                           - आर्यवीर अथर्व आर्य

क्या हनुमानजी वास्तव मे बंदर थे ?

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 ||शंका समाधान विषय|| क्या वाकई हनुमान जी बन्दर थे? क्या वाकई में उनकी पूंछ थी ? ऋषि दयानन्द कहते है की असत्य का त्याग और सत्य को धारण करना ही धर्म है। वाल्मीकि रामायण जो की रामजी के जिवन का मुल व प्रमाणीक ग्रंथ है बाकी सभी रामायण वो उसी को आधार बनाकर के लिखी गई है चाहे वह तुलसिदासजी कदम्बजी या कीसी और अन्य विद्वान के द्वारा लिखी गई हो। वाल्मीक रामायण के अनुसार मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम चन्द्रजी महाराज के पश्चात परम बलशाली वीर शिरोमणि हनुमानजी का नाम स्मरण किया जाता हैं। हनुमानजी का जब हम चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया हैं जिनके पूंछ भी हैं। हमारे मन में प्रश्न भी उठते हैं की इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।  आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते हैं - सर्वप्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते हैं। 🌑 सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते हैं की वानर का अर्थ होता हैं बन्दर परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर श

अद्वैतवाद समीक्षा ।

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अद्वैतवाद समीक्षा । स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन -  भाग 14 वेद और अद्वैतवाद ।   डा. विवेक आर्य - स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के 11वें समुल्लास में अद्वैतवाद विचारधारा पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है । अद्वैतवाद विचारधारा की नीव गौड़पादाचार्य ने 215 कारीकायों (श्लोकों) से की थी । इनके शिष्य गोविन्दाचार्य हुए और उनके शिष्य दक्षिण भारत में जन्मे शंकराचार्य हुए । जिन्होंने इन कारीकायों का भाष्य रचा था । यही विचार अद्वैतवाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ था । शंकराचार्य अत्यंत प्रखर बुद्धि के अद्वितीय विद्वान थे । जिन्होंने भारत देश में फैल रहे नास्तिक, बुद्ध और जैन मत को शास्त्रार्थ में परास्त कर वैदिक धर्म की रक्षा की । उनके प्रचार से भारत में नास्तिक मत तो समाप्त हो गया । पर - मायावाद अर्थात अद्वैतवाद ? (यह क्या बला है - राजीव कुलश्रेष्ठ) की स्थापना हो गयी । अद्वैत मत क्या हैं ? स्वामी शंकराचार्य ब्रह्म के 2 रूप मानते हैं । 1 अविद्या उपाधि सहित है । जो जीव कहलाता है । और दूसरा सब प्रकार की उपाधियों से रहित शुद्ध ब्रह्म है । अविद्या की अवस्था में ही उपास्य उपासक आदि सब व्यवहार

आर्यावर्त्त के सदृश भूगोल में दूसरा देश नहीं है

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ओ३म् “आर्यावर्त्त के सदृश भूगोल में दूसरा देश नहीं है” ............ संसार में अनेक देश है जिनकी कुल संख्या 195 है। इनमें से कोई भी देश मानवता की दृष्टि, ईश्वर व आत्मा के ज्ञान सहित भारत के स्वर्णिम अतीत व वर्तमान की तुलना में महत्वपूर्ण नहीं है। महर्षि दयानन्द ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में लिखा है ‘आर्यावर्त्त देश ऐसा देश है जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है। इसीलिये इस भूमि का नाम सुवर्णभूमि है क्योंकि यही सुवर्णादि रत्नों को उत्पन्न करती है। इसीलिये सृष्टि की आदि में आर्य लोग (आर्यावर्त्त के प्रदेश तिब्बत से सीधे) इसी (निर्जन) देश में आकर बसे।’ ऋषि दयानन्द जी यह भी लिखते हैं कि आर्य नाम उत्तम पुरुषों का है और आर्यों से भिन्न मनुष्यों का नाम दस्यु है। जितने भूगोल में देश हैं वे सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते हैं कि पारसमणि पत्थर सुना जाता है, वह बात तो झूठी है परन्तु आर्यावर्त्त देश ही सच्चा पारसमणि है कि जिसको लोहेरूप दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही सुवर्ण अर्थात् धनाढ्य हो जाते हैं। अपने विचारों के समर्थन में ऋषि दयानन्द ने मनुस्मृति का एक श्लोक उ